प्रसंग 1
शिवाजी के समक्ष एक बार उनके सैनिक किसी गाँव के मुखिया को पकड़ कर ले लाये| मुखिया बड़ी-घनी मूछों वाला बड़ा ही रसूखदार व्यक्ति था, पर आज उसपर एक विधवा की इज्जत लूटने का आरोप साबित हो चुका था| उस समय शिवाजी मात्र १४ वर्ष के थे, पर वह बड़े ही बहादुर, निडर और न्याय प्रिय थे और विशेषकर महिलाओं के प्रति उनके मन में असीम सम्मान था| उन्होंने तत्काल अपना निर्णय सुना दिया , ” इसके दोनों हाथ , और पैर काट दो , ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती|”
शिवाजी जीवन पर्यन्त साहसिक कार्य करते रहे और गरीब, बेसहारा लोगों को हमेशा प्रेम और सम्मान देते रहे|
प्रसंग 2
शिवाजी के साहस का एक और किस्सा प्रसिद्द है| तब पुणे के करीब नचनी गाँव में एक भयानक चीते का आतंक छाया हुआ था| वह अचानक ही कहीं से हमला करता था और जंगल में ओझल हो जाता| डरे हुए गाँव वाले अपनी समस्या लेकर शिवाजी के पास पहुंचे|
”हमें उस भयानक चीते से बचाइए | वह ना जाने कितने बच्चों को मार चुका है| ज्यादातर वह तब हमला करता है जब हम सब सो रहे होते हैं|”
शिवाजी ने धैर्यपूर्वक ग्रामीणों को सुना, ”आप लोग चिंता मत करिए, मैं यहाँ आपकी मदद करने के लिए ही हूँ|”
शिवाजी अपने सिपाहियों यसजी और कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने के लिए निकल पड़े| बहुत ढूँढने के बाद जैसे ही वह सामने आया, सैनिक डर कर पीछे हट गए, पर शिवाजी और यसजी बिना डरे उसपर टूट पड़े और पलक झपकते ही उस मार गिराया| गाँव वाले खुश हो गए और “जय शिवाजी ” के नारे लगाने लगे|
प्रसंग 3
शिवाजी के पिता का नाम शाहजी था| वह अक्सर युद्ध लड़ने के लिए घर से दूर रहते थे| इसलिए उन्हें शिवाजी के निडर और पराक्रमी होने का अधिक ज्ञान नहीं था| किसी अवसर पर वह शिवाजी को बीजापुर के सुलतान के दरबार में ले गए| शाहजी ने तीन बार झुककर सुलतान को सलाम किया, और शिवाजी से भी ऐसा ही करने को कहा| लेकिन शिवाजी अपना सर ऊपर उठाये सीधे खड़े रहे| विदेशी शासक के सामने वह किसी भी कीमत पर सर झुकाने को तैयार नहीं हुए, और शेर की तरह शान से चलते हुए दरबार से वापस चले गए|
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