Followers

Thursday, 31 December 2020

धीरूभाई अंबानी

 



आज के समय मे कौन अमीर नहीं होना चाहता है , जब हम आमिल की बात कर ही रहे है तो उनमे एक नाम आता है धीरु भाई अंबानी का । ऐसा नहीं है की वो हमेशा से आमिर थे उन्होंने मेहनत कर के ये मुकाम हासिल किया है। यह वह इंसान है जो हाईस्कूल की शिक्षा भी पूरी नहीं कर पाया। वह इतने गरीब परिवार से थे कि खर्चा चलाने के लिए उसे अपनी किशोरावस्था से ही नाश्ते की रेहड़ी लगाने से लेकर पेट्रोल पंप पर तेल भरने तक का काम किया। ऐसे लड़के ने जब एक वृद्ध के तौर पर दुनिया को अलविदा कहा तो उसकी सम्पति का मूल्य 62 हजार करोड़ रूपये से भी ज्यादा था। अगर आप अब भी इस शख्सशियत को नहीं पहचान पाएं तो हम बात कर रहे हैं, धीरूभाई अंबानी की। एक ऐसा सफल चेहरा जिसने हरेक गरीब को उम्मीद दी कि सफल होने के लिए पैसा नहीं नियत चाहिए। सफलता उन्हीं को मिलती है जो उसके लिए जोखिम उठाते हैं। धीरूभाई ने बार — बार साबित किया कि जोखिम लेना व्यवसाय का नहीं आगे बढ़ने का मंत्र है।


 


शुरूआती जीवन –


गुजरात के जूनागढ़ के पास एक छोटे से गांव जिसका नाम चोरवाड़ है के एक साधारण शिक्षक के घर में धीरूबाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर, साल 1932 में हुआ था।उनकी माता का नाम जमनाबेन था जो एक घरेलू महिला थी और उनके पिता गोर्धनभाई अंबानी एक साधारण शिक्षक थे, जिनके लिए अपने इतने बड़े परिवार का लालन-पालन करना काफी मुस्किल था।वहीं उनकी नौकरी से घर खर्च के लिए भी पैसे पूरे नहीं पड़ते थे और ऐसे स्थिति मे चार और भाई- बहनों के बीच धीरूभाई का शिक्षा ग्रहण करना काफी मुश्किल था इसी कारण धीरूभाई अंबानी को हाईस्कूल की अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपने घर की मालीय हालात को देखते हुए परिवार का गुजर-बसर करने के लिए अपने पिता के साथ भजिया इत्यादि बेचने जैसे छोटे-मोटे काम करने लगे।


 


यह उदाहरण कि हरेक सफलता के पीछे ढेरों असफलताएं छुपी हुई होती है, धीरूभाई अंबानी पर एकदम सटीक खरी उतरती हैं। धीरुभाई अंबानी ने अपने घर की आर्थिक हालत को देखते हुए सबसे पहले उन्होंने फल और नाश्ता बेचने का काम शुरु किया, लेकिन इसमें उन्हे कुछ खास फायदा नहीं हुआ।उसके बाद उन्होंने गांव के पास ही एक धार्मिक और पर्यटक स्थल में पकौड़े बेचने का काम शुरु कर दिया, लेकिन यह काम वहां आने-जाने वाले पर्यटकों पर पूरी तरह निर्भर था, जो कि साल में कुछ समय के लिए ही चलता था और बाकी समय बास गाव के लोग ही आते थे।जिससे की धीरूभाई जी को अपना यह काम मजबूरन बंद करना पड़ा। जब उन्हेकिसी भी काम में सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने पिता की सलाह से उन्होंने फिर नौकरी ज्वॉइन कर ली।


 


धीरू भाई अंबानी के बड़े रमणीक भाई यमन में नौकरी किया करते थे। उनकी मदद से धीरू भाई को भी यमन जाने का मौका मिला। उन्होंने वहां 300 रुपये प्रति माह के वेतन पर पेट्रोल पंप पर काम किया। मात्र दो वर्ष में ही अपनी योग्यता की वजह से प्रबंधक के पद तक पहुंच गए। इस नौकरी के दौरान भी धीरू भाई का मन इसमें कम और व्यापार में करने के मौकों की तरफ ज्यादा रहा करता था । धीरू भाई ने उस हरेक संभावना पर इस समय में विचार किया कि किस तरह वे सफल बिजनेस मैन बन सकते हैं। एक घटना व्यापार के प्रति जुनून को बयां करती है- धीरूभाई अंबानी जब एक कंपनी में काम कर रहे थे तब वहां काम करने वाला कर्मियों को चाय महज 25 पैसे में मिलती थी, लेकिन धीरू भाई पास के एक बड़े होटल में चाय पीने जाते थे, जहां चाय के लिये 1 रुपया चुकाना पड़ता था। उनसे जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उसे बड़े होटल में बड़े-बड़े व्यापारी आते हैं और बिजनेस के बारे में बातें करते हैं। उन्हें ही सुनने जाता हूं ताकि व्यापार की बारीकियों को समझ सकूं। इस बात से पता चलता है कि धीरूभाई अंबानी को बिजनेस का कितना जूनून था।


 


1950 के दशक के शुरुआती सालों में धीरुभाई अंबानी यमन से भारत लौट आये और अपने चचेरे भाई चम्पकलाल दमानी (जिनके साथ वो यमन में रहते थे) के साथ मिलकर पॉलिएस्टर धागे और मसालों के आयात-निर्यात का व्यापार प्रारंभ किया। रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन की शुरुआत मस्जिद बन्दर के नरसिम्हा स्ट्रीट पर एक छोटे से कार्यालय के साथ हुई। इस दौरान अम्बानी और उनका परिवार मुंबई के भुलेस्वर स्थित ‘जय हिन्द एस्टेट’ में एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता था।


 


वर्ष 1965 में धीरुभाई अम्बानी और चम्पकलाल दमानी की व्यावसायिक साझेदारी समाप्त हो गयी। दोनों के स्वभाव और व्यापार करने के तरीके बिलकुल अलग थे इसलिए ये साझेदारी ज्यादा लम्बी नहीं चल पायी। एक ओर जहाँ पर दमानी एक सतर्क व्यापारी थे, वहीं धीरुभाई को जोखिम उठानेवाला माना जाता था।


 


इन्हीं सब संघर्षों के बीच उनका विवाह कोकिलाबेन से हुआ जिनसे उन्हें दो बेटे मुकेश और अनिल तथा दो बेटियां दीप्ती और नीना हुईं। उन्होंने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और रिलायंस कपड़े के साथ ही पेट्रोलियम और दूरसंचार जैसी कंपनियों के साथ भारत की सबसे बड़ी कंपनी बन गई। इन सबके बीच धीरूभाई अंबानी पर सरकार की नीतियों को प्रभावित करने और नीतियों की कमियों से लाभ कमाने के आरोप भी लगते रहे। उनके और नुस्ली वाडिया के बीच होने वाले बिजनेस घमासान पर भी बहुत कुछ लिखा गया। उनके जीवन से प्रेरित एक फिल्म गुरू बनाई गई जिसमें अभिषेक बच्चन ने उनकी भूमिका का निर्वाह किया। लगातार बढ़ते बिजनेस के बीच उनका स्वास्थ्य खराब हुआ और 6 जुलाई 2002 को उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद उनके काम को बड़े बेटे मुकेश अंबानी ने संभाला।

No comments:

Post a Comment