Followers

Thursday, 31 December 2020

सरदार मिल्खा सिंह

 


मिल्खा सिंह एक ऐसे भारतीय प्रसिद्ध धावक और एथलीट है जिन्हे उड़न सिख और अंग्रेजी मे फ्लाइइंग सिख के नाम से जाना जाता है।इनका जन्म पाकिस्तान के लायलपुर में 8 अक्टूबर, 1935 को हुआ था। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे। जब उन्होंने कटक में हुए राष्ट्रीय खेलों में 200 तथा 400 मीटर में रिकॉर्ड तोड़ दिए तब मिल्खा सिंह का नाम सुर्ख़ियों में आया। 1958 में ही उन्होंने टोकियो में हुए एशियाई खेलों में 200 तथा 400 मीटर में एशियाई रिकॉर्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीते। इसी वर्ष में कार्डिफ (ब्रिटेन) में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता भी जीता। उनकी इन्हीं सफलताओं के कारण 1958 में भारत सरकार द्वारा उन्हें ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। मिल्खा सिंह का नाम ‘फ़्लाइंग सिख’ पड़ने का भी एक बडा कारण था। लाहौर में भारत-पाक प्रतियोगीता में एशिया के प्रतिष्ठित धावक पाकिस्तान के अब्दुल खालिक को 200 मीटर में पछाड़ते हुए तेज़ी से आगे निकल गए, तब लोगों ने कहा- ”मिल्खा सिंह दौड़ नहीं रहे थे, उड़ रहे थे।” बस उनका नाम ‘फ़्लाइंग सिख’ पड़ गया।

 

उन्होंने 1968 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर दौड़ में ओलंपिक रिकॉर्ड पिछले 59 सेकंड का रिकॉर्ड तोड़ते हुए दौड़ पूरी की और मिल्खा सिंह ने अपनी खेल की योग्यता सिद्ध की। यह पंजाब की समृद्ध विरासत का हिस्सा बन चुकी है और इस उपलब्धि को पंजाब में परी-कथा की भांति याद किया जाता है। ओलंपिक मे उनके साथ विश्व के श्रेष्ठतम एथलीट हिस्सा ले रहे थे। 1960 में रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर दौड़ की प्रथम हीट में द्वितीय स्थान (47.6 सेकंड) पाया था। फिर सेमी फाइनल में 45.90 सेकंड का समय निकालकर अमेरिकी खिलाड़ी को हराकर द्वितीय स्थान पाया था और वह फाइनल में वह सबसे आगे दौड़ रहे थे। उन्होंने देखा कि सभी खिलाड़ी काफी पीछे हैं अत: उन्होंने अपनी गति थोड़ी धीमी कर दी ,परन्तु दूसरे खिलाड़ी गति बढ़ाते हुए उनसे आगे निकल गए मगर पूरा जोर लगाने पर भी वो उन खिलाड़ियों से आगे नहीं निकल सके। अमेरिकी खिलाड़ी ओटिस डेविस और कॉफमैन ने 44.8 सेकंड का समय निकाल कर प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त किया यही नहीं दक्षिण अफ्रीका के मैल स्पेन्स ने 45.4 सेकंड में दौड़ पूरी कर तृतीय स्थान प्राप्त किया। मिल्खा सिंह ने 45.6 सेकंड का समय निकाल कर मात्र 0.1 सेकंड से कांस्य पदक पाने का मौका खो दिया।

 

मिल्खा सिंह को बाद में अहसास हुआ कि गति को शुरू में कम करना घातक सिद्ध हुआ। विश्व के महान एथलीटों के साथ प्रतिस्पर्धा में वह पदक पाने से चूक गए। मिल्खा सिंह ने खेलों में उस समय सफलता प्राप्त की जब खिलाड़ियों के लिए कोई सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, न ही उनके लिए किसी ट्रेनिंग की व्यवस्था थी। आज इतने वर्षों बाद भी कोई एथलीट ओलंपिक में पदक पाने में कामयाब नहीं हो सका है। रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह इतने लोकप्रिय हो गए थे कि जब वह स्टेडियम में घुसते थे, दर्शक उनका जोशपूर्वक स्वागत करते थे मगर वहाँ वह टॉप के खिलाड़ी नहीं थे, परन्तु सर्वश्रेष्ठ धावकों में उनका नाम अवश्य था। उनकी लोकप्रियता का दूसरा कारण उनकी बढ़ी हुई दाढ़ी व लंबे बाल थे। लोग उस वक्त सिख धर्म के बारे में अधिक नहीं जानते थे। अत: लोगों को लगता था कि कोई साधु इतनी अच्छी दौड़ लगा रहा है। उस वक्त ‘पटखा’ का चलन भी नहीं था, अत: सिख सिर पर रूमाल बाँध लेते थे। मिल्खा सिंह की लोकप्रियता का एक अन्य कारण यह था कि रोम पहुंचने के पूर्व वह यूरोप के टूर में अनेक बड़े खिलाडियों को हरा चुके थे और उनके रोम पहुँचने के पूर्व उनकी लोकप्रियता की चर्चा वहाँ पहुंच चुकी थी।

 

दो घटनाए मिल्खा सिंह के जीवन में बहुत महत्व रखती हैं। उनमेसे पहला भारत-पाक विभाजन की घटना है ।इसमे उनके माता-पिता का कत्ल हो गया था और अन्य रिश्तेदारों को भी खोना पड़ा था। दूसरी घटना रोम ओलंपिक की है, जिसमें वह पदक पाने से थोड़े से के लिए चूक गए थे। जब मिल्खा सिंह को पाकिस्तान में दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने का आमंत्रण मिल्खा तो वह विशेष उत्साहित नहीं हुए क्युकी अगर वो पाकिस्तान जाते तो उन्हे उनकी पहली घटना बहुत याद आती। फिर भी उन्हें एशिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के साथ दौड़ने के लिए मनाया गया और बहुत प्रयत्न के बाद वो माँ गए। उस वक्त उनका मुकाबला पाकिस्तान का सर्वश्रेष्ठ धावक अब्दुल खादिक से था जो अनेक एशियाई प्रतियोगिताओं में 200 मीटर की दौड़ जीत चुका था। मगर भविष्य किसने देखा था ज्यों ही 200 मीटर की दौड़ शुरू हुई ऐसा लगा कि मानो मिल्खा सिंह दौड़ नहीं रहे है , उड़ रहें हों। उन्होंने अब्दुल खादिक को बहुत ही ज्यादा पीछे छोड़ दिया। दर्शकों को उनकी दौड़ को इतने आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे मानो उन्हे यकीन ही नहीं हो रहा हो। इसे देखते हुए घोषणा की गई कि मिल्खा सिंह दौड़ने नहीं रहे है उड़ रहे है और तब से मिल्खा सिंह को ‘फ़्लाइंग सिख’ कहा जाने लगा। जब ये दौड़ हो रहा था तब उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अय्यूब भी मैदान मे खेल देखने के लिए मौजूद थे। दौड़ में जीत के बाद मिल्खा सिंह को राष्ट्रपति से मिलने के लिए वि.आई.पी.(VIP) गैलरी में ले जाया गया। मिल्खा सिंह ने अपनी जीती गई ट्राफियां, पदक,और यहाँ तक की अपने जूते (जिसे पहन कर उन्होंने विश्व रिकार्ड तोड़ा था), ब्लेजर यूनीफार्म सब कुछ उन्होंने जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में बने राष्ट्रीय खेल संग्रहालय को दान में दे दिए। एशियाई खेल जो 1962 में हुआ था उसमे भी मिल्खा सिंह ने स्वर्ण पदक जीता। खेलों से रिटायरमेंट के बाद वह अभी पंजाब में खेल, युवा तथा शिक्षा विभाग में अतिरिक्त खेल निदेशक के पद पर कार्य कर रहे हैं।

 

पूर्व अन्तरराष्ट्रीय खिलाड़ी निर्मल से उनका विवाह हुआ था। मिल्खा सिंह के एक पुत्र तथा तीन पुत्रियां है। उनका पुत्र जिनका नाम चिरंजीव मिल्खा सिंह जिन्हे जीव मिल्खा सिंह से भी जाना जाता है। वो भारत के टॉप गोल्फ खिलाड़ियों में से आते है यही नहीं उन्होंने राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों पुरस्कार भी जीत चुके है। बीजिंग के एशियाई खेलों जो 1990 में हुआ था उसमे भी उन्होंने भाग लिया था। मिल्खा सिंह की एक इच्छा है यू बोले की उनका सपना है कि कोई भारतीय एथलीट ओलंपिक पदक जीते, जो पदक वह अपनी एक छोटी-सी गलती के कारण जीतने से चूक गए थे। मिल्खा सिंह कहा करते थे कि जब वह अपने पद से रिटायर होंगे उसके बाद वो एक एथलेटिक अकादमी चंडीगढ़ या आसपास खोलें ताकि वह देश के लिए श्रेष्ठ एथलीट तैयार कर सकें जो हमारे देश का नाम रौशन कर सके। मिल्खा सिंह अपनी लौह इच्छा शक्ति के दम पर ही इस मुकाम पर पहुँच सके, जहाँ आज कोई भी खिलाड़ी औपचारिक ट्रेनिंग के भी नहीं पहुँच सका ।

 

वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह को मिली सफलताओं के सम्मान में, उन्हें भारतीय सिपाही के पद से कनिष्ठ कमीशन अधिकारी पर पदोन्नत कर दिया गया। अंततः वह पंजाब शिक्षा मंत्रालय में खेल निदेशक बने और वर्ष 1998 में इस पद से सेवानिवृत्त हुए। मिल्खा सिंह ने जीत में मिले पदक को देश को समर्पित कर दिये थे। शुरुआत में इन सभी पदकों को नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में प्रदर्शित किया गया था, परन्तु बाद में इन्हें पटियाला में एक खेल संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया। मिल्खा सिंह द्वारा रोम के ओलंपिक खेलों में पहने गये जूते को भी खेल संग्रहालय में प्रदर्शित कर रखा गया है। इस एडिडास जूते की जोड़ी को मिल्खा सिंह ने वर्ष 2012 में, राहुल बोस द्वारा आयोजित की गई एक चैरिटी नीलामी में दान कर दिया था, जिसे उन्होंने वर्ष 1960 के दशक के फाइनल में पहना था।

No comments:

Post a Comment